सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन “परमेश्वर के प्रकटन ने एक नए युग का सूत्रपात किया है”

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन “परमेश्वर के प्रकटन ने एक नए युग का सूत्रपात किया है”

परमेश्वर की छह-हज़ार-वर्षीय प्रबंधन योजना समाप्त हो रही है, और राज्य का द्वार उन सभी लोगों के लिए पहले से ही खोल दिया गया है, जो उसका प्रकटन चाहते हैं। प्रिय भाइयो और बहनो, तुम लोग किस चीज़ की प्रतीक्षा कर रहे हो? वह क्या है, जो तुम खोजते हो? क्या तुम परमेश्वर के प्रकट होने की प्रतीक्षा कर रहे हो? क्या तुम उसके पदचिह्न खोज रहे हो? परमात्मा के दर्शन के लिए व्यक्ति कैसे लालायित होता है! Continue reading “सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन “परमेश्वर के प्रकटन ने एक नए युग का सूत्रपात किया है””

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन | “परमेश्वर को जानना परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने का मार्ग है” | अंश 2

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन | “परमेश्वर को जानना परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने का मार्ग है” | अंश 2

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “परमेश्वर की सम्पत्ति और परमेश्वरत्व, परमेश्वर का सत्व, परमेश्वर का स्वभाव—यह सब कुछ मानवजाति को उसके वचन के माध्यम से समझाया जा चुका है। जब इंसान परमेश्वर के वचन को अनुभव करेगा, तो परमेश्वर के कहे हुए वचन के पीछे छिपे हुए उद्देश्यों को समझेगा, तो उनके अनुपालन की प्रक्रिया में, परमेश्वर के वचन की पृष्ठभूमि तथा स्रोत और परमेश्वर के वचन के अभिप्रेरित प्रभाव को समझेगा तथा सराहना करेगा। Continue reading “सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन | “परमेश्वर को जानना परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने का मार्ग है” | अंश 2″

परमेश्वर के दैनिक वचन | “स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III” | अंश 123

बढ़ना: दूसरा घटनाक्रम

यह इस बात पर निर्भर है कि उन्होंने किस प्रकार के परिवार में जन्म लिया है, लोग विभिन्न पारिवारिक वातावरणों में बढ़ते हैं और अपने माता पिता से अलग अलग पाठ सीखते हैं। यह उन स्थितियों को निर्धारित करता है जिसके अधीन कोई व्यक्ति वयस्क होता है, और उसका बड़ा होना किसी व्यक्ति के जीवन के दूसरे घटनाक्रम को दर्शाता है। यह कहने की कोई आवश्यकता नहीं है, कि लोगों के पास इस घटनाक्रम में भी कोई विकल्प नहीं होता है। यह भी तय, और पूर्वनियोजित है।

1. वे परिस्थितियाँ जिसके अधीन कोई व्यक्ति बढ़ता है उन्हें सृष्टिकर्ता के द्वारा तय किया जाता है

कोई व्यक्ति ऐसे लोगों या कारकों का चुनाव नहीं कर सकता है जिसकी मानसिक उन्नति एवं प्रभाव के अधीन वह बढ़ता है या बढ़ती है। कोई व्यक्ति यह चुनाव नहीं कर सकता है कि वह कौन सा ज्ञान या कुशलता हासिल करता है, और वह कौन सी आदतों को निर्मित करता है। कोई भी यह नहीं कह सकता है कि उसके माता पिता एवं सगे सम्बन्धी कौन होंगे, वह किस प्रकार के वातावरण में बढ़ेगा; लोगों, घटनाओं, और आस पास की चीज़ों के साथ किसी का रिश्ता, और वे किस प्रकार किसी के विकास को प्रभावित करते हैं, ये सब उसके नियन्त्रण से परे है। तो, इन चीज़ों का निर्णय कौन लेता है? कौन इनका इंतज़ाम करता है? चूंकि इस मामले में लोगों के पास कोई विकल्प नहीं है, चूंकि वे अपने आप के लिए इन चीज़ों का चुनाव नहीं कर सकते हैं, और चूंकि वे स्पष्ट रुप से स्वाभविक तौर पर विकसित नहीं होते हैं, तो यह बिलकुल साफ है कि इन सब चीज़ों की संरचना सृष्टिकर्ता के हाथों में होती है। ठीक वैसे ही जैसे सृष्टिकर्ता हर एक व्यक्ति के जन्म की विशेष परिस्थितियों का इंतज़ाम करता है, कहने की कोई आवश्कता नहीं है, वह विशिष्ट परिस्थितियों का भी इंतज़ाम करता है जिसके अधीन कोई व्यक्ति बढ़ता है। यदि किसी व्यक्ति का जन्म लोगों, घटनाओं, और उस स्त्री या पुरुष के आस पास की चीज़ों में परिवर्तन लाता है, तो उस व्यक्ति की वृद्धि एवं विकास आवश्यक रूप से उन्हें भी प्रभवित करेगी। उदाहरण के लिए, कुछ लोगों का जन्म गरीब परिवारों में होता है, किन्तु धन सम्पत्ति के साथ पलते बढ़ते हैं; अन्य लोग समृद्ध परिवारों में जन्म लेते हैं किन्तु अपने परिवारों के सौभाग्य का पतन कर देते हैं, कुछ इस तरह कि वे गरीब वातावरण में पलते बढ़ते हैं। किसी भी व्यक्ति के जन्म को निश्चित नियमों के द्वारा नियन्त्रित नहीं किया जाता है, और कोई भी व्यक्ति अनिवार्य, एवं परिस्थतियों की एक निश्चित श्रृंखला के अधीन बढ़ता नहीं है। ये ऐसी चीजें नहीं हैं जिनका कोई व्यक्ति अनुमान लगा सकता है या नियन्त्रण कर सकता है; ये उसकी नियति के परिणाम हैं, और इन्हें उसकी नियति के द्वारा निर्धारित किया जाता है। हाँ वास्तव में, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्हें सृष्टिकर्ता के द्वारा किसी व्यक्ति के भाग्य के लिए पूर्वनिर्धारित किया जाता है, उन्हें उस व्यक्ति की नियति के ऊपर सृष्टिकर्ता की संप्रभुता के द्वारा, और उसके लिए उसकी योजनाओं के द्वारा, निर्धारित किया जाता है।

2. ऐसी विभिन्न परिस्थितियाँ जिनके अधीन लोग पलते-बढ़ते हैं वे अलग अलग भूमिकाओं को जन्म देते हैं

किसी व्यक्ति के जन्म की परिस्थितियाँ उस वातावरण एवं उन परिस्थितियाँ को मूल स्तर पर स्थापित करती हैं जिसमें वे पलते-बढ़ते हैं, और वैसे ही ऐसी परिस्थितियाँ जिनमें कोई व्यक्ति बढ़ता है वे उस स्त्री एवं पुरुष के जन्म की परिस्थितियों का परिणाम हैं। इस समय के दौरान कोई व्यक्ति भाषा को सीखना प्रारम्भ कर देता है, और उसका मस्तिष्क अनेक नई चीज़ों का सामना एवं उनको आत्मसात करना प्रारम्भ कर देता है, इस प्रक्रिया में वह लगातार बढ़ता है। ऐसी चीज़ें जिन्हें कोई व्यक्ति अपने कानों से सुनता है, अपनी आँखों से देखता है, और अपने मस्तिष्क में ग्रहण करता है वे आहिस्ता आहिस्ता उसके भीतरी संसार को समृद्ध एवं जीवंत करते हैं। ऐसे लोग, घटनाएं, एवं चीज़ें जिनके सम्पर्क में कोई व्यक्ति आता है, वह सामान्य बुद्धि, ज्ञान, एवं कुशलताएं जिन्हें वह सीखता है, और सोचने के तरीके जिनके द्वारा वह प्रभावित होता है, मन में बैठाता है, या उसे सिखाया जाता है, वे सब जीवन में किसी व्यक्ति की नियति का मार्गदर्शन करते हैं एवं उसे प्रभावित करते हैं। जब कोई व्यक्ति बढ़ता है तो वह भाषा जिसे वह सीखता है और उसेक सोचने का तरीका उस वातावरण से अविभाज्य होते हैं जिसमें वह अपनी किशोरावस्था को बिताता है, और वह वातावरण माता पिता, भाई बहन, एवं अन्य लोगों, घटनाओं, और उस स्त्री या पुरुष के आस पास की चीज़ों से मिलकर बना होता है। अतः किसी व्यक्ति के विकास के पथक्रम को उस वातावरण के द्वारा निर्धारित किया जाता है जिसमें कोई व्यक्ति पलता-बढ़ता है, और साथ ही लोगों, घटनाओं, और चीज़ों पर भी निर्भर होता है जिनके सम्पर्क में इस समय अवधि के दौरान कोई व्यक्ति आता है। चूँकि ऐसी स्थितियाँ जिनके अधीन कोई व्यक्ति पलता-बढ़ता है वे बहुत पहले से ही पूर्वनिर्धारित हैं, और वह वातावरण जिसमें कोई व्यक्ति इस प्रक्रिया के दौरान जीवन बिताता है वह भी, प्राकृतिक रूप से, पूर्वनिर्धारित है। इसे किसी व्यक्ति के चुनाव एवं प्राथमिकताओं के द्वारा निश्चित नहीं किया जाता है, किन्तु इसे सृष्टिकर्ता की योजनाओं के अनुसार निश्चित किया जाता है, सृष्टिकर्ता के सावधानी से किए गए इंतज़ामों के द्वारा, और जीवन में किसी व्यक्ति की नियति पर सृष्टिकर्ता की संप्रभुता के द्वारा निर्धारित किया जाता है। अतः ऐसे लोग जिनका सामना कोई व्यक्ति बढ़ने के पथक्रम में करता है, और ऐसी चीज़ें जिनके सम्पर्क में कोई व्यक्ति आता है, वे सभी अनिवार्य रूप से सृष्टिकर्ता के आयोजन एवं इंतज़ाम से जुड़े हुए हैं। लोग इस प्रकार के जटिल पारस्परिक सम्बन्धों को पहले से नहीं देख सकते हैं, और न ही वे उन्हें नियन्त्रित कर सकते हैं या उनकी थाह ले सकते हैं। बहुत सी अलग अलग चीज़ों एवं बहुत से अलग अलग लोगों का उस वातावरण पर प्रभाव होता है जिसमें कोई व्यक्ति पलता-बढ़ता है, और कोई मानव ऐसे विशाल सम्बन्धों के जाल का इंतज़ाम एवं आयोजन करने के योग्य नहीं है। सृष्टिकर्ता को छोड़ कोई व्यक्ति या चीज़ सब प्रकार के अलग अलग लोगों, घटनाओं, एवं चीज़ों के रंग-रूप, उपस्थिति, एवं उनके लुप्त होने को नियन्त्रित नहीं कर सकता है, और ये केवल सम्बन्धों के इतने विशाल जाल हैं जो किसी व्यक्ति के विकास को आकार देते हैं जैसा सृष्टिकर्ता के द्वारा पूर्वनिर्धारित किया जाता है, और विभिन्न प्रकार के वातावरण का निर्माण करते हैं जिनमें लोग पलते-बढ़ते हैं, तथा उन विभिन्न भूमिकाओं की रचना करते हैं जो सृष्टिकर्ता के प्रबंधन के कार्य के लिए, और लोगों के लिए ठोस एवं मज़बूत बुनियाद डालने हेतु आवश्यक होता है कि वे सफलतापूर्वक अपने अपने उद्देश्य को पूरा कर सकें।

— ‘स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III’ से उद्धृत

बहुत से लोगों को लगता है कि उनका प्रारब्ध उनके अपने हाथ में है। लेकिन जब आपदा आती है, हम सभी को असहायता, भय और दहशत होती है, और हम मानवजाति की महत्वहीनता और जीवन की नाजुकता को महसूस करते हैं। … हमारा उद्धार किसके हाथ में है? ईसाई संगीतमय वृत्तचित्र—वह जिसका हर चीज़ पर प्रभुत्व है—शीघ्र ही उत्तर को प्रकट करेगा!

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन “केवल अंतिम दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनन्त जीवन का मार्ग दे सकता है”

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सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन “केवल अंतिम दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनन्त जीवन का मार्ग दे सकता है”

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: “अंतिम दिनों का मसीह जीवन लेकर आया, और सत्य का स्थायी एवं अनन्त मार्ग प्रदान किया। इसी सत्य के मार्ग के द्वारा मनुष्य जीवन को प्राप्त करेगा, और एक मात्र इसी मार्ग से मनुष्य परमेश्वर को जानेगा और परमेश्वर का अनुमोदन प्राप्त करेगा। Continue reading “सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन “केवल अंतिम दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनन्त जीवन का मार्ग दे सकता है””

अंतिम दिनों के मसीह के कथन “स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III परमेश्वर का अधिकार” (अंश)

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अंतिम दिनों के मसीह के कथन “स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III परमेश्वर का अधिकार” (अंश)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: “मानवता एवं विश्व की नियति सृष्टिकर्ता की संप्रभुता के साथ घनिष्ठता से गुथी हुई हैं, और सृष्टिकर्ता के आयोजनों से अविभाज्य रूप से बंधी हुई हैं; अंत में, उन्हें सृष्टिकर्ता के अधिकार से धुनकर अलग नहीं किया जा सकता है। सभी चीज़ों के नियमों के माध्यम से मनुष्य सृष्टिकर्ता के आयोजनों एवं उसकी संप्रभुता को समझ पाता है; Continue reading “अंतिम दिनों के मसीह के कथन “स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III परमेश्वर का अधिकार” (अंश)”

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन “तुम्हें मसीह की अनुकूलता में होने के तरीके की खोज करनी चाहिए” (अंश)

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सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन “तुम्हें मसीह की अनुकूलता में होने के तरीके की खोज करनी चाहिए” (अंश)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं “वे लोग, जो भ्रष्ट हो चुके हैं, सब शैतान के फंदे में जीवन जी रहे हैं, वे शरीर में जीवन जीते हैं, स्वार्थी अभिलाषाओं में जीवन जीते हैं, और उनके मध्य में एक भी नहीं है जो मेरे अनुकूल हो। कई ऐसे हैं जो कहते हैं कि वे मेरी अनुकूलता में हैं, परन्तु वे सब अस्पष्ट मूर्तियों की आराधना करते हैं। Continue reading “सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन “तुम्हें मसीह की अनुकूलता में होने के तरीके की खोज करनी चाहिए” (अंश)”

I. परमेश्वर में विश्वास करने के लिए, एक व्यक्ति को यह अवश्य पहचानना चाहिए कि मसीह देह में प्रकट परमेश्वर है, और कि वह स्वयं परमेश्वर है

संदर्भ के लिए बाइबल के पद

“फिलिप्पुस ने उससे कहा, ‘हे प्रभु, पिता को हमें दिखा दे, यही हमारे लिये बहुत है।’ यीशु ने उससे कहा, ‘हे फिलिप्पुस, मैं इतने दिन से तुम्हारे साथ हूँ, और क्या तू मुझे नहीं जानता? जिसने मुझे देखा है उसने पिता को देखा है। तू क्यों कहता है कि पिता को हमें दिखा? क्या तू विश्‍वास नहीं करता कि मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में है? ये बातें जो मैं तुम से कहता हूँ, अपनी ओर से नहीं कहता, परन्तु पिता मुझ में रहकर अपने काम करता है। मेरा विश्‍वास करो कि मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में है; नहीं तो कामों ही के कारण मेरा विश्‍वास करो'” (यूहन्ना 14:8-11)।

मैं और पिता एक हैं” (यूहन्ना 10:30)।

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सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन – तेरहवाँ कथन”

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कलिसियाओं के लिए पवित्र आत्मा के वचन “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन – तेरहवाँ कथन”

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: “वास्तविक अनुभव के बिना, कोई मानव कभी भी मुझे नहीं जान पाएगा, मेरे वचनों के माध्यम से मुझे जानने में कभी भी समर्थ नहीं हो सकेगा। किन्तु आज मैं व्यक्तिगत रूप से तुम लोगों के बीच आया हूँ: क्या यह मुझे जानना तुम्हारे लिए सुगम नहीं बनाएगा? क्या ऐसा हो सकता है कि मेरा देहधारण भी तुम्हारे लिए उद्धार नहीं है? यदि मैं अपने व्यक्तित्व में मानवजाति में नहीं उतरा होता, तो सम्पूर्ण मानवजाति बहुत समय पूर्व धारणाओं के साथ से रिस गई होती, जिसका अर्थ है कि शैतान की सम्पत्ति बन गई होती, क्योंकि जो कुछ तुम विश्वास करते हो वह सिर्फ़ शैतान की छवि है और परमेश्वर स्वयं से उसका कुछ लेना-देना नहीं है। क्या यह मेरे द्वारा उद्धार नहीं है?” Continue reading “सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन – तेरहवाँ कथन””

कलिसियाओं के लिए पवित्र आत्मा के वचन “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन – सत्ताईसवाँ कथन”

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कलिसियाओं के लिए पवित्र आत्मा के वचन “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन – सत्ताईसवाँ कथन”

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: “मनुष्य से पृथक होने और फिर एक होने के आनन्द और दुःखों में, हम मनोभावों का आदान-प्रदान करने में असमर्थ होते है। ऊपर स्वर्ग और नीचे पृथ्वी पर पृथक हुए, मैं और मनुष्य नियमित रूप से मिलने में असमर्थ हैं। पूर्व की भावनाओं के विषाद से कौन मुक्त हो सकता है? कौन अतीत के बारे में स्मरण करने से अपने आप को रोक सकता है? कौन अतीत के मनोभावों की निरंतरता की आशा नहीं करेगा? कौन मेरी वापसी की अभिलाषा नहीं करेगा? Continue reading “कलिसियाओं के लिए पवित्र आत्मा के वचन “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन – सत्ताईसवाँ कथन””

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन – सत्रहवाँ कथन”

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सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन – सत्रहवाँ कथन”

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: “सम्पूर्ण मानवजाति मेरे चेहरे को देखने की लालसा करती है, परन्तु जब मैं पृथ्वी पर व्यक्तिगत रूप से उतरता हूँ, तो वे सब मेरे आगमन के विरुद्ध हो जाते हैं, वे सभी रोशनी को आने से भगा देते हैं, मानो कि मैं स्वर्ग में मनुष्यों का शत्रु हूँ। मनुष्य अपनी आँखों में एक रक्षात्मक रोशनी के साथ मेरा स्वागत करता है और इस बात से गहराई से भयभीत होकर कि मेरे पास उसके लिए कुछ अन्य योजनाएँ हो सकती हैं, हमेशा सतर्क बना रहता है। Continue reading “सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन – सत्रहवाँ कथन””